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हद करते हैं-had karte Hain-Hindi Ghazal-best hindi Ghazal by ℕ 𝕂𝕦𝕞𝕒𝕣

सोचता हूं कभी-कभी हद करते हैं।
उनकी खातिर खुद को, शहद करते हैं।

उठाते हैं नाज़ उनके, सर आंखों पे अपनी,
क्योंकि प्यार भी हम उनसे, बेहद करते हैं।

दगा करने वालों से ही पड़ता है पाला,
वो लोग कौन होंगे, जो मदद करते हैं।

जानते हैं प्यास से, मर रहे हैं लेकिन,
वो बरसात नहीं खुद को, शरद करते हैं।

हम उन्हें बक्श देंगे, ये सोचा भी कैसे,
यार लेन-देन तो हम भी, नगद करते हैं।

जो करते थे कभी बैठकर प्यार भरी बातें,
वो अब खामखा ही घर को, संसद करते हैं।

हर किसी से "कुमार" हम, दिल नहीं लगाते,
लोग हमारी भी बेहद, खुशामद करते हैं...

©N Kumar "Sahab"

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